Saturday, December 22, 2012

मेरी हार, उसकी जीत..

कुछ दिनों पहले एक फेसबुक स्टेटस देखा जो असल मेरी ही कुछ पंक्तियाँ थी जो 4 साल पहले लिखी थी, गूगल में ढूंढा  तो देखा कई जगह वो पंक्तिया थी। किन्तु वो अधूरी थी , ऐसे में मैंने कोशिश की  पूरी कविता को एक नए तरीके से प्रस्तुत करने की , आशा है आपको पसंद आएगी '.....


Thursday, April 26, 2012

तुम..(24-Apr-2010)


ना जाने कौन सी ताक़त है,जिसने मेरे विचारों को, मेरी भावनाओं को सक्षम बना दिया है. इतना सक्षम की मैं कह सकूँ की  तुम ही हो जो मेरी हर सोच, हर विचार, हर संवेदना में रहती हो.

साँसे मेरी पहले भी चलती थी ,पर अब पता चला की क्यो चलती हैं. सिर्फ़ इसलिए की हर साँस को क़लम बनाकर अपने बदन पर बार - बार तुम्हारा नाम लिख सकूँ, लगातार तब तक जब तक ये साँसे चलती रहें.

मैने ये शर्त नही रखी की तुम भी हर पन्ने पर मेरा नाम लिखो , बस इतना चाहता हूँ की ज़िंदगी की किताब के किसी भी पुराने गले पन्ने पे, जिसे तुम कभी उलटकर देखना भी ना चाहो, कहीं भी कभी भी एक बहुत छोटा सा "अनुपम" लिख देना, चाहे अगले ही पल उसे मिटा देना. हाँ पर ये वादा ज़रूर करता हूँ की मेरी ज़िंदगी की किताब के हर पन्ने पर बार-बार , हर बार सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम लिखा होगा .

जिंदगी अभी भी चल रही है , पर अगर तुम साथ होगी  तो ये गर्म हवाएँ भी सर्द हो जाएँगी , ये थॅकी- थॅकी सी बहारें ,थके घुटनों का बहाना नही बनाएँगी.

शायद तुम्हे अच्छा ना लगे पर तुम्हे शीशे के गोल लिफाफे से ढक दूँगा. ताकि कोई भी मौसम , कोई भी हवा , तुम्हारे चेहरे के एक भी भाव को बदल ना पाए. और जब हम दोनो लाठी लेकर , झुकी कमर के साथ जिंदगी के आख़िरी पड़ाव पर पहुँचेंगे , तब भी मैं यही कहूँगा की " You are the Most beautiful Woman in this world".

Regards
Anupam S "Shlok"
8447757188
24-Apr-2010

Sunday, April 8, 2012

मैं


भाग १)


कुछ सवालों के अधूरे सफ़र की मंज़िलो को ढूंढता मैं,
कुछ सुनहरे शब्दो के अनसुलझे मतलबों को ढूंढता मैं,
कही गिरता,कहीं बिखरता,टूटता,सिमटता,शीशे के गिलासों सा मैं,
ठंडा सा वेगवान, अविरल, नित्य, दरियाओं की नियती सा मैं!

भटकता हुआ,थकता हुआ, उठता, चलता हुआ,
अबोध किंतु लालायित, ज्ञान पृष्ठ पलटता मैं,
रिश्तो,नज़दीकियों,नातो,समृद्धि,प्रेम,भय से भागता मैं,
मानवीय,दैविय, हलचलों के बीच,स्वीकृत को अस्वीकृत सिद्ध करता मैं!!


भाग २)



क्या मैं हार चुका हूँ जो हार स्वीकार नही करता?
या मैं जीता हूँ जो हार के भय से आगे खेलना नही चाहता?
मैं तलाश स्वयं की कर रहा हूँ या स्वयं से दूर भागता?
क्यो निमित्तता भयभीत करती है मुझे, क्यो आग्रह कचोटता है मुझे?
मेरे प्रश्न गंभीर अधिक हैं या गूढता की चाह में असंगत?
मेरी दृश्यता की चाह कहीं आह्वान तो नही करती अदृश्यता का?
विनम्रता दिखावा है या दृढ़ता भुलावा?
जन्म बाधक, मृत्यु भय, मोक्ष असिद्ध अभेद!

मेरा प्रश्न वही नित्य....

"जिस राह पर मैं हूँ, कही उसकी मंज़िल को पीछे , बहुत पीछे छोड़ तो नही आया हूँ मैं?"



Regards
अनुपम S. "श्लोक"
2/Apr/2012
08447757188, 09868366319
anupamism@gmail.com
http://in.linkedin.com/in/anupamism





एक मटमैले पंछी और चितकबरे कौवे की कहानी!!! (7th April 2012)


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एक मटमैला पंछी मिला एक चितकबरे कौवे से;
लगा उसे कुछ, मिला उसे कुछ , नया नया कुछ;
दिनभर खाना ढूँढना, बिना लक्ष्य उड़ना,
आह...कितना पुराना सा;
अब पल भी ठहरने लगा था , और ठहराव व्यक्तित्व में भी था;


एक भाव था सुनहरा- सुनहरा, जंगल हर भरा लगने लगा,
ना तो कीट पतंगो को ढूँढना होता, ना ही डर किसी का;
बस ओतप्रोत हर चीज़, भाव एक , मात्र "शुद्ध"!!


पर कौवा कुछ और चाहता था, जो पंछी से छुपा था,
दिन बीतते रहे, विश्वास बदता रहा,
एक दिन कौवा ले चला उसे दूर, उसके जंगल से दूर;
पंछी अकेला था, पर विश्वास दृढ़ , अकेला नहीं.


कुछ भावनाएँ, समय, डर, अविश्वास,संताप से नही दबती,
छेद देती हैं हर संदेहरूपी हाइड्रॉजनमयी गुब्बारा,
सच कभी सिर्फ़ एक व्यक्ति तक सीमित हो जाता है ,
सीमित हो जाता है हर एक दायरा, हर भाव, मात्र "शुद्ध"!!


पर कब तक रहते चितकबरे, पंछी के साथ;
वही हुआ जो निश्चित था,
अभी पंछी घायल था मरा नही , बस मरने का इंतज़ार था,
चितकबरो की चोन्चे वार करती रही,करती रही, करती रही....


आख़िरी शब्द निककलना नही चाहते थे,
पंछी कुछ और झूठे पल जीना चाहता था,
कुछ और पल , केवल "उसके" लिए...
जिसकी चोंचो ने लहलुहान कर दिया था,

आख़िरी शब्द थे.....

"जो मेरे साथ हुआ किसी से ना कहना"!!


Regards
By :- अनुपम S. "श्लोक"
7/Apr/2012
08447757188, 09868366319
anupamism@gmail.com
http://in.linkedin.com/in/anupamism

Thursday, March 29, 2012

औरत (29-Mar-2012)

क्या फर्क.....??
तू गीता है, सलमा है, जैनी या फिर गुरिंदर ......
अस्तितत्व तेरा सिर्फ एक "शरीर"है ."..... "औरत "........

कहानी के कथानक बदलते हैं कहानी खुद नहीं....

तेरी आँखों की  मासूमियत कौन देखे......???
"वो" तेरी "छाती" को देखना चाहते हैं....!!
तू बुद्धिजीवी हो अच्छा है ...
तेरे बदन के "उभार" आकर्षक हो ... "निश्चित".....!!

क्या फर्क ....????
तू बारह हो , बाईस हो, बत्तीस हो या फिर बयालीस....
अस्तितत्व तेरा सिर्फ एक "शरीर"है ."..... "औरत "........

कुछ नोचेंगे...
कुछ राह चलते कुल्हे को हाथ लगायेंगे....
कुछ प्रेम का सहारा लेंगे....!!

"मुद्दा" सिर्फ एक...
बिस्तर पर कैसे ले जाएँ तुझे.....??
इन बाधक कपड़ो को कैसे फाड़ फैंके ....??

क्या फर्क....??
तू गोरी है या काली , बीमार है या फिर विधवा...!!
तेरे भाग्य में "छीला"जाना लिखा है ..सिर्फ..!!

जिनको वक्षस्थल से अमृतमय ढूढ़ पिलाया था....
एक दिन वोही पल्लू खींचेंगे तेरा..!!

संभोगमात्र है तू.....
या स्वीकार कर ले , अन्यथा टूट पड़....
बदल दे अस्तित्व चित्र...!!

किन्तु कहानी के कथानक बदलते हैं कहानी खुद नहीं....!!

Regards
Anupam S. Shlok
08447757188
Dated - 29-Mar-2012
DELHI