Thursday, January 9, 2014

जय महाकवि अनुपम शर्मा ....!!!(25-August-2002)



इस व्यस्त दुनिया  में रहने वाले हम भी हैं ,
नाम है अनुपम शर्मा ;
मुझसे ही प्रेरणा लेकर अपने बच्चो को ,
कवि बनाना चाहती है  हर माँ ;
वैसे तो और भी कवि इस संसार में बसते हैं ,
पर  वो तुच्छ "महाकवि" के समक्ष कहाँ टिकते हैं ;
मुझ जैसा हरफनमौला कहाँ मिल सकता सकता है जग को ,
मेरा स्थान वही है , जो मिला है अंगूठी में नग को। 
पर आज प्रसिद्धि का कारण आपको बताने का मन करता है ;
हालंकि अंतः मन बताने से डरता है ,
पर सुनिये यूंकि ये हम बोल रहें हैं ,
बोलने से पहले शब्दो को चुन चुनके तोल रहें हैं ;


मैं भी पहले नमूना सा कवि था , हालत ठीक न थे ,
कविजगत में अन्य कवि झूमर से सजे थे ;
मगर किस्मत का भी क्या ठिकाना है मिस्टर ,
बेहोश पड़े थे , खड़े होगये तनकर ;
कारण था हमें C.M. कि source मिल गयी थी ,
असल में उनकी कविता कि आदत नयी नयी थी ;
मगर अन्य कवि उनकी महाकविता सुनने से कतराते थे ,
सुनने जाते थे पदों पर , स्ट्रेचर से वापिस आते थे ;
उनकी कविता बेसिर - पैर कि हुआ करती थी ,
मगर कविता में खोट निकलने कि आदत , कवियों के प्राण हरती थी ,
मगर मेरा इरादा पक्का था , आगे बढ़ने का ,
C.M. का सहारा लेकर , कविता जगत रूपी पेड़ पर चढ़ने का ,
अतः प्रयासों से हम उनके चमचे बन गए ,
पहले बदबूदार मोज़े थे , अब गमछे बन गए ;
C.M. आवास में जाने कि छूट मिल गयी हमें ,
हम भी दिनभर रहते थे वही जमें ,
अब तो हम C.M. के प्यारे हो गए थे ;
प्रतिभा प्रदर्शन से जग में न्यारे हो गए थे ,
१ माह में ४ संकलन छप चुके थे ,
पुरस्कार लेने हेतु सूट नप चुके थे ;
तब से ही जलते हैं हमसे सभी कवि ,
मानो सितारों को मिटाने आया हो कोई रवि ,
हमारी कविता सुन बच्चे जल्दी सो जाते हैं ,
और पागल तक (ही) हमारी कविता सुनने आते हैं ;

तो , आज तुम्हे सफलता हेतु एक सूत्र देता हूँ ,
आप कि नैया को अब में खेता हूँ ,
तो बोलो एक वादा दे पाओगे ,
यदि कुछ बनना चाहते हो तो चमचे बनके दिखलाओगे ,
फल के रूप में फिर दूध मलाई खाओगे ,
फिर एक वादा कर लो तुम " मुझे नहीं भूल जाओगे" 
जय माता के साथ ही तुम , जय अनुपम शर्मा गाओगे "



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
8447757188
25-August-2002

कवि सम्मलेन का वर्णन.....!!!( 1-May-2002)


करुण कविता के पश्चात हास्य का नंबर आया ,
तो अध्यक्ष के सेक्रेटरी ने अध्यक्ष को हमारा नाम सुझाया ;
जनता के आँखों से मोती रुपी अश्रु  गिर रहे थे ,
सहायक जन अध्यक्ष के बगल में रूमाल लेके खड़े थे ;
ऐसे में हास्य कविता ऊंट के मुंह में जीरा प्रतीत होती ;
हमारी कविता सुनकर जनता दीदे फाड़ के रोटी ,
फिर भी हमने आदेश माना , सुनाने लगे कविता ,
कविता कुछ इस प्रकार की थी ;


जूते के बग़ल में पड़े थे मौज़े हमारे ,
सूंघते ही बेहोश हो गए "सारे के सारे" ;
हमारा सौभाग्य कि पालतू पूसी ले गयी मुंह में दबाके ;
मानो बिल्ली चली हो हज़ को ८० चूहे खाके ;
बदबू का कारण बदतमीज़ी पूसी कि थी ;
पेट ख़राब होने पर भी मौज़ों के ऊपर बैठी थी ;
होश आने पर लोगों का गुस्सा हमारे पर था ;
बोले जहाँ बैठे थे वो शौचालय  नहीं घर था ;
उन्हें क्या पता ये पूसी का  काम है,
कवि जगत में "अनुपम" का कितना बड़ा नाम है ;
बात को ६ वर्ष हो गए मगर "सारे" घर नहीं आये ,
नयी कविता के भी उन्होंने "रसगुल्ले" नहीं खाये ;
पूसी को भगा दिया हमने जूते मार के ,
बंद करा दिए "गैप" अपने द्वार के ,
बस यही मौज़ों और पूसी कि कहानी है ,
और ये कहानी "अनुपम शर्मा" की जुबानी है। 


हमारी इस तुच्छ कविता ने रुलाई बंद करायी ,
माईबाप जनता ने वन्स मोर कि आवाज़ लगायी ,
तो इस बार हमने "क्रिकेट मैच " का वर्णन किया ,
मैच कुछ इस प्रकार का था ,

"भारत और पाकिस्तान का मैच था "अनुपम"
शाहिद , सचिन बेकरार थे दिखाने को अपनी सरगम ,
टॉस का समय था , कप्तान सामने खड़े थे ,
वेन्यू टोरंटो था , दोनों के रुख कड़े थे ;
टॉस उछाला गया , सौरभ ने टॉस जीता ;
बगल में खड़ा था , वक़ार नामक चीता ;
सौरभ के जीतते ही , वक़ार ने गुर्राहट लगायी ,
"टॉस फिक्सिंग " है , ये कहके बात बढ़ायी ;
बड़ी मुश्किल से वक़ार को मनाया गया ,
टॉस हारने पर भी उसी से मंगाया गया ,
तो वक़ार ने पहले बल्लेबाज़ी मांगी ,
श्रीनाथ कि प्रथम गेंद ही शाहिद ने हवा में टांगी ,
कैच करने वाला सचिन तेंदुलकर था ,
मगर अंपायर पाकिस्तानी जावेद अख्तर था ,
तो अंपायर ने बॉल को नो बॉल बताया ,
और नो बॉल पे कैच करने के लिए ५ रन का पेनल्टी लगाया ,
२५ ओवर के बाद पाकिस्तान के १११ रन थे ,
दोनों ओपनर  अब तक विकेट पे डटे थे;
अब  बॉलिंग द्रविड़ को दी गयी , उसने कमाल कर दिया ;
पहली ३ गेंदो पर हैट्रिक लेकर धोती को फाड़ के रुमाल कर दिया ;
पाकिस्तानी टैलेंडर  ने कुछ साहस दिखाया ,
तथा स्कोर २७० / ९ तक पहुँचाया ;


पारी भारत की थी २७१ रन बंनाने थे ,
इस बार अंपायर  वेंकटराघवन कुछ जाने पहचाने थे ;
भारत कि तरफ से ओपनर वेंकटेश ने शतक बनाया ,
मगर उसका साथ टैलेंडर सचिन को  छोड़ कोई न दे पाया ;
अंतिम ओवर था ५ रन बनाने थे ,
इस बार जावेद अख्तर के ज़माने थे ;
बॉलर था सोहेब , बैट्समैन था सचिन ;
प्रथम गेंद पर ही रन लिए तीन ,
ओपनर वेंकटेश प्रसाद स्ट्राईक पर आया ,
और उसने आसानी से १ रन चुराया ,
४ गेंद बाकी थी १ रन बनाना था ,
विकेट भी एक था , समर्थको का तराना था ,
अगली गेंद को सचिन ने पुश किया ,
मगर अंपायर ने सचिन को आउट दे दिया ;
आउट होने का काऱण कुछ न बता पाने पर ,
अंपायर ने आउट को नोट आउट कराया ,
ऊँगली उठ जाने को एक छोटी से गलती बताया ;
अगली गेंद सचिन के ऑफ-स्टंप के बाहर पैड पर टकरायी ,
बिना अपील के अंपायर ने फिर से ऊँगली उठायी ;
इस बार अंपायर ने सचिन को एलबीडबल्यू कराया ;
बेईमानी से ही सही किन्तु मैच टाई कराया ;

इस कविता को सुन एक क्रिकेट समर्थक ने हमें ५०० रु पकड़ाये ,
तथा अनुपम शर्मा इस कवि- सम्मलेन में बेस्ट कवि आये ;



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
8447757188
1-May-2002






Wednesday, January 8, 2014

एक करुण रात्रि का वर्णन...!!!(22- February- 2002)

रोती हुई आँखों से कविता लिखने कि ठानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;
हास्य के सम्राट द्वारा श्रेस्ठ रचना आ रही ,
रात के ११ बजे , पड़ोसन हमारी गा रही है ,
दिमाग मैं है जंग सा थोडा बहुत है लग रहा ,
लग रहा है बगल में बुड्ढा अभी तक जग रहा ,
कुत्ते कि गुर्राहट से नींद अब तो जानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;


टीवी पड़ा है बंद पर सोना नहीं है आ रहा ,
भूत नयी कविता का ये मस्तिष्क से नहीं जा रहा ,
हाथ में पीड़ा सा कुछ अनुभव हमें है हो रहा ,
और प्रिय कालू हमारा ऊँचे स्वर में रो रहा ;
जितने लम्बे पैर हैं , चद्दर उतनी ही तानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है


भैंस कि झंकार से मम्मी हमारी जग पड़ी ,
पेट क्या ख़राब है , ये कहके हमसे लड़ पड़ी ,
"अनुपम" कि कलम को तोड़कर फैंका वहाँ ,
अस्थि पंजर ढूंढने में लग गए जहाँ तहाँ ;
ऐसे में पापा को मेरे दूध रोटी खानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;


अनुपम S "श्लोक"
anupamism@gmail.com
22-Feb- 2002


परीक्षा का भूत.....!!! (6 - Apr- 2002)

वह मनुष्य था या यमराज का दूत ,
स्पष्ट नहीं होता ,  यदि चढ़ा हो परीक्षा का भूत ;
पूर्ण दिवा - रात्रि सोचने में चली जाती है ,
स्वप्न में मात्र कबीर कि जीवनी याद आती है ;
गणित के सूत्र रटना आसान नहीं होता ;
परीक्षा हेतु नक़ल ले जाने वाला शैतान नहीं होता ;
हर माता अपने  पुत्र को समझती है सपूत ,
स्पष्ट नहीं होता ,  यदि चढ़ा हो परीक्षा का भूत ;


इंग्लिश कि स्पेलिंग राइटिंग रांग  हो जाती है ,
लिखना चाहता था ईश्वर (GOD ) मगर कुत्ते (DOG) का एहसास दिलाती है ,
संस्कृत के रूपों में अहं घूमता रह जाता हूँ ,
लट् कि जगह लोठ् , और लोठ् कि जगह लृट् के रूप लिखके आता हूँ ;
फिजिक्स , केमिस्ट्री , बायो में कन्फ्यूजन हो जाता है ,
E = mc2 डार्विन का सिद्धांत नज़र आता है ,
सामाजिक विज्ञान कि तूती केवल घर में बोलती है ;
नंबर नदारद होते  हैं , असल दिखता है केवल सूद ,
स्पष्ट नहीं होता ,  यदि चढ़ा हो परीक्षा का भूत। 


अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
6-April-2002



Saturday, January 4, 2014

इस रात के बाद ....!!!(4th - Jan - 2014)

मिल जाएगा बहाना  तुम्हे इस रात के बाद ,
नया ठौरे ठिकाना तुम्हे इस रात के बाद। 

अटखेलियों कि  रिमझिम बौछारें  थमेंगी अब तो ,
बंजर रहेगी  धड़कन  इस रात के बाद। 

छायी हुयी ये धुंध ,मुट्ठी में जो थी मेरी;
दम मेरा घोट देगी इस रात के बाद। 

जो दोस्त थी हमारी वो बदनसीब गलियां ,
अजनबी सी होंगी इस रात के बाद।  

आंसुओं से शायद , समंदर को भर मैं डालूं ,
ये आग कब बुझेगी इस रात के बाद ;

रोओगी तुम भी हरपल ये बद्दुआ है  मेरी ,
तड़पोगी , खुश न होगी इस रात के बाद। 

सिंदूर ही था बाकी , बीवी तुम्हे था माना ,
बेवा बनी फिरोगी इस रात के बाद। 

छोड़ो "श्लोक" हम भी कातिल कम नहीं हैं ,
पछताएँ शायद हम भी इस रात के बाद। 



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
4th- Jan-2014

Friday, January 3, 2014

कवितायेँ जन्म नहीं लेती....!!!! (3rd-Jan-2014)

कवितायेँ जन्म नहीं लेती ,
पर कविता ने कल रात जन्म लिया।
एक अट्टहास के साथ , कोलाहल के साथ ,
पुऱाने संतरे के पेड़ के नीचे ,
किसी नौसिखिये कवि  कि कलम से।
जिसकी तलाश ही थी , कविता का जन्म।
देखो तो मुस्कुराती हंसी उसके चेहरे पे ,
जैसे कुछ नया चुटकुला सुना हो कोई ;
अब देखना...
देखना कविता का बालक से युवती बनने का सफ़र ,
और फिर कविता बूढ़ी हो जायेगी ,
पर वो मरेगी नहीं , क्योंकि कवितायें मरती नहीं कभी ;
शब्दो के शुक्राणु और भावनाओं के अंडाणु ,
दोनों ही तो अमर हैं , तो कविता क्यों मरेंगी भला ?
ये सहवास ही तो पवित्र है बस ;
जो केवल कविता के जन्म के लिए ही है  ;
किसी भौतिक आनंद के लिये नहीं।
आओ गीत गायें , प्रफुल्लित हों ,
क्योंकि कविता ने जन्म लिया है ,
जबकि कविताएं जन्म नहीं लेती।



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
3rd-Jan-2014

बिलकुल पगली है तू ...!!!!(3-Jan-2014)

ओ रही हवा, बिलकुल पगली है तू ,
यूँ बौराई फिरती है , कूचा कूचा , गली गली ;
यूँ तो भिखारी मानेगा रे तुझे हर कोई ,
हर ठौर पे रुकोगी तो थक न जाओगी ;
बावरी , जरा चुनरी संभाल , सरकने न दे ;
कुछ तो होश में रह , पगलाई बेवा सी न बन ;
देख तो पैर बचा , कही कंकर न चुभ  जाए ;
अगले मोड़ पे कीचड है , धस न जाना कही ;
कुलबुलाई जा रही है , किसे गलियाती है ??
थोडा रुकेगी तो चलूँगा मैं भी साथ में ,
सुबह से कुछ खाया भी नहीं है न तूने ?
तभी दुबलाई जा रही है दिन - ब - दिन ,
अच्छा सुन , सो ले कुछ देर छाँव है बरगद कि ,
संग तेरे मैं भी सुस्ता लूंगा कुछ देर यहीं ;
हाहाहा , क्या , डर सतावे है तुझे प्रेत का;
तुझ से बड़ा प्रेत मुझे तो न दिखा कोई ;
चल छोड़ , न छेड़ता तुझे , छोड़ दिया ;
पर याद रखियो , मुझ जैसी प्रीत न मिलेगी तुझे ,
ओ रही हवा, बिलकुल पगली है तू।



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
3-Jan-2014

आओ आंसू , थमो नहीं.... !!!!(3-Jan-2014)

आओ आंसू , थमो  नहीं.... !!!!
धो दो ये दाग कि मैं उसका पहला प्यार नहीं ,
या प्यार ही नहीं शायद…??
धो डालो वो वक़्त कि जब मैं उसके संग था ,
धो डालो वो स्पर्श जो महसूस होता था उसकी छुअन पे ;
पर जानता हूँ , तुम एक छिछोरी पानी कि बूँद हो बस ;
कलुषित कलंक को धो न पाओगे।
तुम तो तब भी निकले थे , जब मैं बार बार बिखरा  था ,
क्या प्राप्त किया मैंने या तुमने अब तक।
ये आज का युग है , कलयुग है ;
जब भी तुम आते थे , समझाता था तुम्हे चुपके से ,
ये प्रेम नहीं है माया है , मकड़ी का जाला  सा ;
हाँ दोषी मैं हूँ , पर तुम भी हो , मानोगे न ?
जब मेरी आँख से निकले तुम कोई मूल्य न था ,
उसकी आँख से निकले मैंने तुम्हे ईश्वर माना ;
याद है न , ऊँगली पे लेके पिया था तुम्हे , जैसे गंगाजल ;
तुमने शिकायत भी नहीं कि उसकी तब भी , कि ढोंग है सब ;
चलो छोड़ो , अब जाने दो , उसको जीना है जीने दो ;
जब भी चाहो आ जाना , मेरी आँखों पे छा  जाना ;
प्रण है तुम्हे न रोकूंगा , घर दूंगा , दूंगा सम्मान ;
आओ चले मित्र बन जाएँ , संग रहे सदा ,
आओ आंसू , थमो नहीं …!!!!



अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
3rd - January 2014