Tuesday, January 27, 2009

BHARANGAM - भारत रंग महोत्सव


गत ७-१९ जनवरी तक देल्ही और लखनऊ में ११ वां भारंगम मनाया गया.....
मैंने पूरे भारंगम को कुछ पंक्तिओं में समेटने का प्रयास किया है......






कविता का शीर्षक है "मैं भारंगम हूँ "।



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मैं कला हूँ, मैं संस्कृति हूँ,मैं विचार हूँ, मैं आन्दोलन हूँ।
मैं भारंगम हूँ।


मैं जोहरा की जवानी हूँ,
मैं अनुराधा ,अमाल की रवानी हूँ,
मैं स्वरंगी की शैतानी हूँ,
मैं नाटक , नृत्य ,कहानी हूँ,
मैं भारंगम हूँ।
मैं श्यामानंद का नन्द हूँ,
मैं आनंद हूँ स्वानंद हूँ,
मैं शांतनु का विचार हूँ,
मैं क्रोध,श्रृंगार, सदाचार हूँ
मैं भारंगम हूँ।
मैं ticket, paas , invitation हूँ,
मैं NSD की creation हूँ,
मैं जज्बा हूँ आगे बदने का,
मैं मौका रूदिवाद को तोड़ने का,मैं भारंगम हूँ।
मैं रामगोपाल की लैला हूँ,
मैं कापूची का खाली थैला हूँ,
मैं कभी स्वेतरंग , कभी मैला हूँ,
मैं थोड़ा हूँ पर नहीं अकेला हूँ,मैं भारंगम हूँ।

मैं विशेष आलोकिक अनुभूति हूँ,
मैं जुलेखा चौधरी की कृति हूँ,
मैं आह्वान हूँ आगे बदने का,
मैं श्रोत हूँ शौर्य हूँ लड़ने का ,मैं भारंगम हूँ


मैं मंटो के शब्दों की ताकत हूँ,
मैं हाशमी की सहादत हूँ ,
मैं धूप हूँ ,मैं छावं हूँ ।
मैं शहर हूँ , मैं गाँव हूँ ,
मैं भारंगम हूँ।
मैं बहुमुख , सम्मुख, अभिमंच हूँ,
मैं LTG, कमानी ,SRC रंगमंच हूँ,
मैं NSD प्रवेश का प्रपंच हूँ,
मैं FOOD COURT का लंच हूँ,
मैं भारंगम हूँ।
कभी मैं छोटा बच्चा सा,
कभी झूठा , कभी सच्चा सा,
सहादत हसन का "ठंडा गोश्त" हूँ,
मैं अनुज, अग्रज हूँ, दोस्त हूँ,

मैं भारंगम हूँ।
मैं इस्तांबुल भी लाहौर भी हूँ,
मैं कहीं नहीं हर ठौर भी हूँ,
मैं हूँ गिरिजा के सपनो सा,
छु के देखो ,हूँ अपनों सा,
मैं भारंगम हूँ।

मैं मह्रिषी का भव्य मंच हूँ,
मैं डाकघर का सरपंच हूँ,
मैं LA PREMIERE FOIS हूँ abstract सा,
कभी आतिगूद "The Rest" सा ,
मैं भारंगम हूँ।
कभी मैं एक आवाज़ हूँ,
उस आवाज़ का स्वर हूँ,
उस स्वर की गूँज हूँ,
उस गूँज का रस हूँ,

मैं भारंगम हूँ।


मैं अस्तित्व हूँ, रंगमंच का,
मैं अभिप्राय हूँ, रंगमंच का,
मैं प्रसंग , व्याख्या , निष्कर्ष हूँ,
मैं आनंद हूँ, आतिहर्ष हूँ,
मैं भारंगम हूँ।

मैं आप में हूँ, मैं भारंगम हूँ,
आप मुझ में हैं,
मैं भारंगम हूँ,
मुझे सहेज के रखना ,
मैं भारंगम हूँ,
मैं फिर आऊंगा ,मैं भारंगम हूँ,
मैं भारंगम हूँ।

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कल २६ जनवरी को मुझे पता चला की God does exist.


Regards

Anupam S.
(Anupamism Rock)
9868929470
anupamism@gmail.com

1 comment:

Roshan Singh said...

its been pleasure to hav u on blogspot BHARANGAM is something that leads to the beauty of theater as i understood from this blog.