Friday, January 30, 2009

"सपना- एक परी का"


मैंने एक सपना देखा। एक सपना जो एक सपने सा ही लगता था। क्योंकि वो मेरी सोच, मेरे विचार के आखिरी छोर के अंत तक जाता था ।
उस सपने में मैंने एक "परी " को देखा ,एक परी जो शायद गाय के दूध के मक्खन से बनी थी ,
जिसके होंठ संतरे की फांको जैसे थे, उसकी भौओं को देखकर अमावस्या का चंद्रमा याद आता था ,उसकी गर्दन थी या नक्काशेदार सुराही , पता नही चलता था।


मैंने उसे एक बार देखा और फिर उसपे से नज़रे हटाने की हिम्मत नही कर सका । उसकी आँखें उन आँखों की बात करती थी जिनके लिए शहजादे भिखारी हो जाएँ ।


मैंने सोचा काश एक बार जाकर परी के पंखो को सहलाऊँ ,और तब तक सहलाता रहूँ ,जब तक परी को नींद न आ जाए,और वो मेरी गोद में सर रखकर सपना देखने लगे। एक ऐसा सपना जिसमे मैं उसका सपना बन जाऊं । मैं ये ही सोच रहा था , मेरी आँखे बंद थीं या यूँ कहें मैं जागती आँखों से सपना देख रहा था ।


तभी मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा ,ऐसा लगा किसी ने मुझे नींद से जगाया हो । मेरे सामने वोही परी खड़ी थी । मैंने उसके गालों को छूके देखा ,ये जानने के लिए की कही मैं सपना तो नही देख रहा।मगर ऐसा करने से उसके गालों पर मेरी उंगलिओं के निशान पड़ गए।


उसने देखा मेरी और , उसके होंठ हिल रहे थे । मुझे नही पता उसने क्या कहा , क्योंकि मुझे तो उन होंठो का हिलना एक खूबसूरत सपने का सा एहसास दिला रहा था। एक बार उन हाथों ने मुझे फिर छुआ । मुझे जागती आँखों के सपने से जगाने के लिए , उन मखमली हाथों को मुझे जोर से हिलाना पड़ा।


ये शायद उन हाथों के एहसास का जादू था , या फिर उन संतरे की फांको जैसे होंठो के हिलने का असर ,या शायद परी के बदन की खुशबू। जिसके असर से मैं सपने से जाग गया पर एक बार फिर से सपनो में खो जाने के लिए।


क्योंकि......क्योंकि.....क्योंकि...परी ने मुझसे बात की...शायद मैं सपना देख रहा था । उसने बांसुरी की सी आवाज़ में मुझसे पुछा "तुम्हारा नाम क्या है अजनबी?"
मुझे नही मालूम था की मैं क्या करूँ , मैं उस सवाल का जवाब नही देना चाहता था , क्योंकि मैं सिर्फ़ उन्ही शब्दों की गूँज के सहारे कई जिंदगियां बिता देना चाहता था । अगर मेरे होंठ हिलते जवाब देने के लिए तो उनसे निकले शब्द शायद उस गूँज की खूबसूरती को खूबसूरत नहीं रहने देते । पर क्या करता मैं उस प्रश्न का जवाब दिए बिना रह भी तो नही सकता था,जवाब न देकर मैं परी के चेहरे पर उदासी की एक भी लकीर नही देखना चाहता था. मुझे न चाहते हुए भी जवाब देना ही पड़ा।

मैंने कहा " मैं सपनो का सौदागर "।

परी ने फिर से मुझसे मुस्कुराकर पूछा, "किस चीज़ का सौदा करते हो"।

मैंने कहा " सपनो का"।

"किस चीज़ से" परी ने फिर पूछा।

मैं क्या कह सकता था , मैं वही बोला जो उन आँखों ने मुझसे बुलवाया ,"सपनो का सपनो से, एहसासों का एहसासों से, खुशबुओं का खुशबुओं से "।

" इनमे से तुम्हे क्या चाहिए", मैंने परी से पूछा।

परी ने बड़ी सादगी से कहा," अगर मैं तुम्हे बताऊँ की मुझे क्या चाहिए तो क्या तुम मुझे वो दे सकते हो, बदले में मैं एक बार तुम्हारे माथे को चूमुंगी। "
एक पुजारी को क्या चाहिए ? केवल उसके भगवान का आशीर्वाद।
एक नदी को क्या चाहिए? बस सागर की गोद।
एक भंवरे को क्या चाहिए? बस फूलों की मिठास।

अब इसके बदले में परी ने मुझसे पूरी दुनिया भी मांगी होती, तो भी मुझे देनी ही थी
आखिरकार उसके होंठो ने मेरे माथे को छुआ , वो एहसास जो कई जन्मो तक मेरे साथ ही रहने वाला था। वो शायद एक सपना ही तो था।
थोडी ही देर में परी के हाथों में वो था, जो उसने माँगा था । जिससे वो खेल रही थी ,कभी उछालती थी , कभी जमीन पर मारती थी , कभी चूमती थी कभी साफ़ करती थी ।
वो था "मेरा दिल।"
पास ही में मैं पड़ा था , मेरे होंठो पर मुस्कान थी, मेरे हाथों पर उस छुअन का असर था। मेरे माथे पर था होंठो का निशान , अगर नही थीं केवल दो चीज़ें " एक मेरे सीने में दिल और दूसरी मेरे जिस्म में जान"
पर परी थोडी ही देर में उस दिल से उबने लगी ,उसने एक बार दिल को बड़े ध्यान से देखा, आखिरी बार , और फिर उसने दिल को अपनी दायीं तरफ़ जोर से उछाल दिया ।


मेरा दिल अभी भी वहीँ पड़ा था, नही....नहीं.... जमीन पर नहीं, बल्कि ढेर पर सबसे ऊपर, उस ढेर पर जहाँ सैकडो दिल पहले से पड़े थे।


मैं अब भी दूर पड़ा " सपना" देख रहा था



अनुपम S.
(Anupamism Rock)
9757423751
anupamism@gmail.com







2 comments:

Mukesh Bhardwaj said...

I think the title of this story should be on some Horror Movie ....like "GHATAK PARI", "EK DARAWNI PARI", "PARI YA EK PYAASI CHUDAIL?" & something like this.......

Mukesh Bhardwaj said...

Anupam if u dont mind. I wanna give this story an end. I kept thinking about this story last night and finally I got an complete end for this story or dream whatever you call it. Please read it carefully and imagine:


वो परी जिसने तुम्हारे दिल के साथ खेल कर पास पड़े ढेर में ही फेक दिया था. तुंरत ही वो परी एक खतरनाक और डरावनी चुडैल में बदल गई. उसके बड़े-बड़े बाल बिखरे हुए थे, उसके होठो पर खून लगा हुआ था और मुँह से खून टपक रहा था, उसके गंदे कपडे खून से लतपत थे, उसकी आँखें बिलकुल सफ़ेद थी उसमे आँखों की काली पुतली नहीं थी, वो डरावनी आँखें शायद मेरी और घूर रही थी. मै अभी भी वही दिलों के ढेर के पास पडा हुआ ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहा था. मगर फिर भी मैने प्रश्न भरी आखों से उससे पूछा, क्यों?

मै इस प्रश्न का सवाल जानना चाहता था की वो ऐसा क्यों करती थी. उसकी आँखों में जैसे सिर्फ नफरत के अलावा कुछा और न था. परन्तु फिर भी शायद जैसे मेरी आँखों ने उसको मेरा जवाब देने के लिए विवश कर दिया था. उसने जैसे मेरे सवाल का जवाब देने के लिए मुँह खोला, मुझको महसूस हुआ की मेरे फ़ोन का अलार्म बज रहा था और मेरी नींद खुल गई. मेरा सपना टूट गया था, मगर मै अभी भी डरा और सहमा हुआ सा था.

सुचमुच वो एक डरावना सपना था. मेने उसके बारे अपने दोस्तों को बताया तो वो हसने लगे. मगर मेरे लिए वो रात सुचमुच एक डरावनी रात थी और उस दिन के बाद मुझे परियो से बहुत डर लगने लगा. मेरे पिताजी ने बहुत समझाया की वो सिर्फ एक सपना था, मगर मेरे लिए..........................................................