Tuesday, February 3, 2009

आयाम......

तुम्हे देखता हूँ .....!(24-Mar-2008)




तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास देखता हूँ....
हाँ नफरत करता हूँ.....
बहुत नफरत करता हूँ.....
नफरत करता हूँ ,उस हवा से जो तुम्हे छु के जाती है .....
नफरत करता हूँ , उस पानी से ,जो तुम्हारे होंठो को छूके;
तुम्हारे हलक से नीचे चला जाता है....
कैसे माफ़ करूँ सूरज की रोशनी को,
जो तुम्हारे सुर्ख गालों को छूके और सुर्ख हो जाती है.....
तुम्हारी साँसों से जलता हूँ , जो हर वक्त तुम्हारे साथ रहती हैं .....


अब बस एक ही ख्वाइश है , की जब मैं मरुँ ,
तो मेरी राख को तुम अपनी आँखों में काजल की तरह लगा लेना....
ताकि कुछ देर के लिए ही सही , तुम्हारी आँखों में डूब तो पाऊंगा .....
तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास देखता हूँ....









आखिरी पल....(7-4-2008)







आज आखिरी दिन था , शायद जीने का .....
वो आखिरी पल था शायद , साँस लेने का....
जब वो सीढ़ीयां ख़तम हुई ,और.....
तुम्हारी आँखों ने मेरी आँखों को देखा.....


मेरी आवाज़ ही नही , साँसे भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं ....
लेकिन क्या करूँ वो एक बात है जो ख़तम ही नहीं होना चाहती....
कैसे यकीं दिलाऊँ तुम्हे की मैं ग़लत हो सकता हूँ , मेरा इरादा नहीं....
कब तक तड़पूं या कब तक याद करता रहूँ,
तुम्हारे हाथो के उस एहसास को....
जो मेरे हाथों में खुशबू की तरह बस गया है......


हाँ शायद कुछ गलतीओं की कोई माफ़ी नही होती ....
लेकिन ......
"तुम झूठ बोल सकती हो तुम्हारी आँखें नहीं....
और उन्होंने तो उस दिन भी झूठ नही बोला था...."











Anupam S. Shlok
SRCian
8447757188
anupamism@gmail.com



16 comments:

Anonymous said...

good very good.

शोभित जैन said...

अरे ये क्या लिख दिया आपने, दिल छूने तक तो ठीक था पर ये तो दिल चीरने का काम कर रही है

अभिषेक मिश्र said...

Bahut khub. Vakai 'anupam'.

Publisher said...

उत्तम! ब्लाग जगत में पूरे उत्साह के साथ आपका स्वागत है। आपके शब्दों का सागर हमें हमेशा जोड़े रखेगा। कहते हैं, दो लोगों की मुलाकात बेवजह नहीं होती। मुलाकात आपकी और हमारी। मुलाकात यहां ब्लॉगर्स की। मुलाकात विचारों की, सब जुड़े हुए हैं।
नियमित लिखें। बेहतर लिखें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मिलते रहेंगे।

saraswatlok said...

ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है।
बहुत अच्छी कविता है।

Unknown said...

कविताएं काफी अच्छी है।
श्याम बाबू शर्मा
http://shyamgkp.blog.co.in
http://shyamgkp.blogspot.com
http://shyamgkp.rediffiland.com

E mail- shyam_gkp@rediffmail.com

Dr. Virendra Singh Yadav said...

blog ki is mayaroopi jadoogary nagari me apka swagat hai.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

photo bhee jandar shandar hain. naraayn narayan

Mukesh Bhardwaj said...

apko bataana chaunga ki anupam mera hi dost hai jo mere sath hi kaam karta hai, aur usne ye kavita ek cow ko dekhkar likhi thi, jab hum dono coward me gaye hue the.....just imagine ki apke saamne ek cow khadi hui hai.........aur tum ye kavita pad rahe ho........

तुम्हे देखता हूँ .....!


तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास padi ghaas ko देखता हूँ....
हाँ नफरत करता हूँ.....
बहुत नफरत करता हूँ.....
नफरत करता हूँ ,उस saand से जो तुम्हे छु के jaata है .....
नफरत करता हूँ , उस पानी से ,जो तुम्हारे होंठो को छूके;
तुम्हारे हलक से नीचे चला जाता है....
कैसे माफ़ करूँ सूरज की रोशनी को,
जो tumhari poochh को छूके और सुर्ख हो जाती है.....
तुम्हारी maalkin से जलता हूँ , जो हर वक्त तुम्हारे साथ रहती हैं.....

अब बस एक ही ख्वाइश है , की जब मैं मरुँ ,
तो मेरी राख को तुम अपनी poochh में ghunghroo की तरह लगा लेना....
ताकि कुछ देर के लिए ही सही , तुम्हारी me bandhe ghunghroo jab bajenge to में unki aawaaz डूब तो पाऊंगा .....
तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास padi ghaas ko देखता हूँ....

Mukesh Bhardwaj said...

आखिरी पल....bheekh maangne ka....



आज आखिरी दिन था , शायद bheekh maangne का .....
वो आखिरी पल था शायद , mere katore me pade chand sikko ko dekhne का....
जब वो सीढ़ीयां ख़तम हुई ,और.....
तुम्हारी आँखों ने मेरी आँखों को देखा.....
mene tumse kaha "allah ke naam pe kuchh de de baba"

मेरी आवाज़ ही नही , साँसे भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं ....
लेकिन क्या करूँ tumhari aukad dekhkar ruk gaya....

कैसे यकीं दिलाऊँ तुम्हे की मैं ग़लत हो सकता हूँ , मेरा इरादा नहीं....bheekh mangne ka magar.....
कब तक तड़पूं bhookh se या कब तक fariयाद करता रहूँ,
तुम्हारे हाथो se mere gira wo 1 ka sikka....
जो मेरे katore में khote sikke की तरह बस गया है......

हाँ शायद कुछ bhikhariyo ke pas katora नही होती ....
लेकिन ......

"तुम झूठ बोल सकती हो, kyonki तुम्हारी आँखें नहीं....batan hai.......
और उन्होंने तो उस दिन भी mujhe bheekh dene se inkaar kar diya tha था...."

Mukesh Bhardwaj said...

apko bataana chaunga ki anupam mera hi dost hai jo mere sath hi kaam karta hai, aur usne ye kavita ek cow ko dekhkar likhi thi, jab hum dono gaushaala me gaye hue the.....just imagine ki apke saamne ek cow khadi hui hai.........aur tum ye kavita pad rahe ho........




तुम्हे देखता हूँ .....!


तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास padi aur sukhi ghaas ko देखता हूँ....jo pehle kabhi hari thi....

हाँ नफरत करता हूँ.....
बहुत नफरत करता हूँ.....
नफरत करता हूँ ,उस हवा से जो तुमne nikali thi .....
नफरत करता हूँ , उस पानी से ,जो तुम्हारे होंठो को छूके;
तुम्हारे हलक से नीचे चला जाता है....

mein माफ़ karta hu सूरज की रोशनी को,
jisko pata nahi ki uska kya hone waala है.....
जलता हूँ minto fresh se, जो हर वक्त तुम्हाree saanso ko taaza rakhti हैं.....
kyonki mujhko to tumhare moo ki badboo hi suhati hai...

अब बस एक ही ख्वाइश है , की जब मैं suicide karoo ,

तो us khoon mein apna mooh dho lena jo bachpan se tumne dhoya nahi hai....
ताकि कुछ देर के लिए ही सही , tumaare kuchh kaam to aa jaunga.....

तुम्हे देखता हूँ, और फिर तुम्हारे आसपास padi aur sukhi ghaas ko देखता हूँ....jo pehle kabhi hari thi....

Anurag Chowdhary said...

good very good

Anurag Chowdhary said...

very gooooooooood

Anonymous said...

hey that was a really nice one.. tumhe dekhta hoon aur phir tumhare aas paas dekhta hoon.. superlike..:)

Anupam S Shlok said...

Thanks Dhrishti

Anupam S Shlok said...

Thanks Dhrishti