Monday, June 8, 2009

रास्ट्रीय नाट्य विद्यालय(NSD) एक ढकोसला

एक थिएटर स्टुडेंट होने के नाते हमें हमेशा बताया गया है की , भारतीय थिएटर में NSD का क्या महत्व है। और उसमे होना कितने गौरव की बात है । कल तक मै यही मानता था , पर जिस तरह की मानसिक प्रतारणा , पिछले दो दिन में मुझे इस संस्था की वजह से मिली है , मेरी सोच पूरी तरह बदल चुकी है।




इस लेख के माध्यम से मैं किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पणी नही करना चाहता , अपितु कला का ठेकेदार बन बैठी इस संस्था के ठेकेदारों को सहज भाव से ये एहसास दिलाना चाहता हूँ , कला किसी व्यक्ति या संस्था की पूँजी नही है, और उसपर अपना एकाधिकार समझना छोड़ दें।


आज केवल इस संस्था की वजह से मै प्रण ले चुका हूँ की जीवन भर थिएटर नही करूँगा . जो व्यक्ति अपने क्षेत्र में थिएटर को लाना चाहता था , उन लोगो के बीच जो थिएटर शब्द से ही वाकिफ नही हैं , आज इस तरह का प्रण लेने के लिया मजबूर हो चुका है कारण है NSD की तानाशाही






सर्वप्रथम ,NSD प्रवेश प्रक्रिया के प्रपंच के सम्बन्ध में टिप्पणी करना चाहूँगा , क्योंकि अभी तक NSD प्रवेश को अत्यधिक महत्व दिया जाता रहा है । पर अब जब मैं इस प्रवेश प्रकिया में मौजूद अव्यवस्थाओं का स्वतः ही साक्षी हूँ , तो जरूर इसका रस्सावादन सबको करवाना चाहूँगा।




सर्वप्रथम स्पष्ट कर देना चाहूँगा , की इसको चलाने वाले चाहते है , की इसमे प्रवेश के लिए हजारो प्रविष्टिया आयें । इसलिए केवल प्रवेश प्रक्रिया (२००९) पर Advertisement के लिए ही आठ लाख रुपये फूक दिए गए पर कुल प्रविष्टियाँ आई 600 । जबकि पूर्व में ये संख्या कही ज्यादा हुआ करती थी । खैर इसमे से ज्यादातर प्रविस्टिया Delhi के लिए आई थी, यानी देश के दूरदराज क्षेत्रो में अभी भी थिएटर को पहुँचाने में ये दिग्गज संस्था कुछ नही कर पायी है , और Delhi में थिएटर के लिए इस संस्था का ही केवल योगदान नही है।


खैर Delhi केन्द्र में Audition के लिए तीन दिन नियत करे गए 4, 5 और 6 जून २००९। जिसमे कुल 215 लोगो को बुलाया गया , पर जिसके लिए बेहद दोयम दर्जे के इन्तजाम किए गए थे । Audition शुरू होने के कुछ देर बाद ही काफ़ी छात्रों से कह दिया गया " तुम लोग कल आना "


जल्दी जल्दी में ऑडिशन ख़तम किए गए , क्योंकि NSD Faculty को 3rd year के एक छात्र का डिप्लोमा Productions देखना था  था अगले दिन सुबह आठ बजे फिर से ऑडिशन शुरू किए गए ,पर जिस तरह से Audition हुए उसका भगवान् ही मालिक है ।


मैं भी इस रेलमपेल ऑडिशंस का साक्षी रहा , मुझसे कहा गया जो तैयार करके लाये हो दिखाओ ,उसके बाद मुझसे जाने को कह दिया गया । मैंने अचम्भे से जूरी की तरफ़ देखा और कहा " पर हमसे तो नाटक और थिएटर साहित्य पड़ने को कहे गए थे, और आप उसपर परिचर्चा करने वाले थे" । जवाब में मुझसे कहा गया की "नही आप जाओ"


मैं अचंभित था , क्योंकि उन्होंने मुझसे कुछ भी बात नही की थी , और न जाने उन्हें कैसे पता चला की मैं कैसा व्यक्ति हूँ , एवं थिएटर से किस हद तक प्यार करता हूँ।


आप इसे मेरा घमंड मान सकते हैं, पर मैं दावे के साथ कह सका हूँ , की थिएटर एवं साहित्य का मैंने अच्छा खासा अध्ययन किया है ,जिसके कारण आप मुझे बिल्कुल भी नवोदित नही मान सकते । रही बात परफॉर्मेंस की तो उसे भी मैं अच्छी की श्रेणी में तो रख ही सकता हूँ।


वहां की व्यवस्था देखकर भी मैं दंग रह गया , क्योंकि आप वहां पर कत्थक करे या Break डांस आपको ढोलक और हर्मोनिअम पर ही करना था


मेरे एक दोस्त के ऑडिशन के वक्त तो एक मुख्य जूरी मेंबर ने वहां बैठना भी मुनासिब नही समझा । दोस्त मुझसे बोला "यार मुझे पता नही वो लोग मुझे जज कैसे करेंगे क्योंकि उन्होंने तो मुझे देखा तक नही। "


खैर उन दिगज्जो ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए दूसरे दिन रात के 1:30 बजे तक ऑडिशन लिए , पर इसलिए की किसी भी तरह भीड़ ख़तम हो जाए । और ये सोचे बिना की लोग दूर प्रदशो से आए हैं , और आपने उन्हें सुबह आठ बजे से बैठा रखा है , ऐसे में पन्द्रह घंटे से इंतज़ार कर रहे आवेदक से आप क्या आशा लगाते है की वो क्या परफोर्म करेगा ।


खैर अगले दिन 6 जून को जूरी के एक प्रमुख सदस्य को विदेश जाना था तो ऑडिशंस को विगत दिनों से भी ज्यादा तेज़ी से निपटाया गया और अंततः रात 10:30 बजे रिजल्ट चस्पा कर दिया गया।पर जिसे देखकर सभी के होश फाख्ता हो गए।


जो लोग होने चाहिए थे , वो बिल्कुल नही थे ; और जो लोग बिल्कुल नही होने चाहिए थे वो थे । हमें समझ आ चुका था , की NSD मैनेजमेंट को थिएटर से कोई लेना देना नही है । और न ही उन्हें योग्य व्यक्ति की तलाश रहती है , अपितु वो तो सिर्फ़ ऐसे व्यक्ति चाहते है जिन्हें वो तीन साल अपने पास रख सके ,और वो छात्र उनकी किसी बात का खंडन न करें , दब कर रहें । इसीलिए ऑडिशंस में ख़ास ख्याल रखा जाता है की , अगर किसी भी व्यक्ति में अगर leadership quality दिखे तो न लिया जाए,उन्हें ऐसे व्यक्ति चाहिए जो उनकी उनकी सुनते रहें । और कोई भी छात्र NSD प्रबंधन के " अच्छे " प्रबंधन में रोड़ा न बने ।


खैर उनके इस So called रिजल्ट ने कइओं के ह्रदय में इस संस्था के प्रति नफरत भर दी।


कई सूत्र तो ये भी कहते थे की, कुछ सीटों का बटवारा कई " मठाधीश" पहले ही कर चुके होते हैं।




खैर इसके अलावा भी कई मुद्दे ऐसे है , जो इस भारी भरकम बजट वाली इस संस्था के अस्तित्व पर ही सवाल उठाते है।


जहाँ एक तरफ़ बाहरी थिएटर Groups 1 -1 रुपये के लिए मोहताज़ है , वही NSD स्टूडेंट्स productions पर दस - बारह लाख रुपये खर्च करता है । उसके बाद भी शो में केवल Stage , Direction , Music ही दिखता है , ऐक्टर नही ।




NSD मैनेजमेंट से ये बात पूछना चाहूँगा की वो "STREET THEATER "या "THIRD THEATER" जैसे Concepts को क्यों Student Productions में शामिल नही करते । वैसे इस सवाल का जवाब वो न भी दे तो भी हम उत्तर जानते ही हैं ।


मैनेजमेंट Workshops आयोजित कराने के लिए भी उन्ही व्यक्तिओं का चयन करता है जिससे उनके घनिष्ट सम्बन्ध हो।


इस लेख के माध्यम से मै भारत सरकार का ध्यान इस संस्था पर आकर्षित करना चाहूंगा , जो अपनी मनमर्जी कर रही है , और सुनने में आता है की NSD कला को फैलाने वाली श्रेष्ठ संस्था है


ये बात जान लेनी चाहिए की अगर हम कला को वाकई में फैलाना चाहते हैं , तो दकोसले बंद करे, और वाकई में कला के प्रति एक प्यार पैदा करे , तभी हम एक बेहतर कला की और समाज की आशा कर सकते हैं ।










Regards
Anupam S.
(9757423751 / 9619499813 )
anupamism@gmail.com
(SRC 2009)

1 comment:

Sajal Ehsaas said...

maine college me kuchh chote mote naatak kiye hai aur likhe hai...isse isme ruchi hai...vaise theatre ne hamesha hi fascinate kiya hai mujhe...aur adhiktar logo ki tarah NSD ko leke mere bhi mann me aisi kuch batein thi,par ab ek kilaa sa dhvast hota dikh rahaa hai...

vaise aapko bata doon k filmo me jo naye varg ke kai directors aa rahe hai unse aksar sunaa ha ki wo NSD aur aisi kuch sansthaaon ki pranaali ko sahi nahi maante...ho sakta hai ki sacmuch kalaa ke naam pe chalne waale in sansthaano me ek kalaakar ko apni rachnatmaakta ko dikhaane ka sahi avsar nahi mil raha hai...ye bahut dukh ki baat hai....


www.pyasasajal.blogspot.com