राष्ट्रवाद छद्म हो सकता है,एक पंथ को फायदा पहुंचाने का यंत्र हो सकता है, इतने पर भी,उसे सिरे से नकारना, घातक बताना,उसे ठीक तरह से परिभाषित न कर पाने भर का प्रभाव भर रहा है । समाजवाद किताबी तौर पर राष्ट्रवाद का प्रत्यक्ष विकल्प नही लगता है किंतु फिर भी दुनिया भर के आधुनिक समाजो में दोनों विचारो ने एक दूसरे का अहित करने का भरसक प्रयास किया है ।
सरसरी दृष्टि से ही ज्ञात होता है कि बौद्धिक स्तर पर दक्षिणपंथ तब उदय होता है जब समाज के पास साधनों का अभाव होने का डर उदय होता है और उनके दोहन के लिए एक क्रम की आवश्यकता "बनाई" जाती है। "आखिर संसाधनों पर प्रथम अधिकार किसका?" इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास ही समाजो को बांटता है।
समाजवाद एक बुद्धिमान विचारधारा है, ये बुनियादी तौर पे समाज का हितार्थ सोचने वालो को आकर्षित करता है, और नतीजतन मार्क्सवाद, साम्यवाद जैसी अधिक विकसित विचारधाराओं का जन्म द्योतक है। समाजवाद के पास डॉक्टरेट हैं, जिनके पास तथ्य है, तथ्य अपने ढंग से प्रस्तुत करने में समाजवाद का कोई सानी नही है।
समाजवाद या राष्ट्रवाद दोनों ही समाज के सबसे बड़े वर्ग (majority) के लिए बात करते हैं,वो वर्ग जिसके पास साधनों का अभाव है. दोनों विकसित स्तर पर हिंसा को जन्म देते हैं.अंततोगत्वा,आधुनिक समाज पूंजीवादी है, जिसका समाजवाद चिर विरोधक है। राष्ट्रवाद ने खुद को बदल खुद को पूंजीवाद के अनुकूल बनाया है।
Anupam S Shlok
#anupamism
Nihilist | Anti Non-vegeterianism | Cinephile | Cricket Lover | Student of Politics , history , religion and civilizations
Sunday, June 3, 2018
राष्ट्रवाद और समाजवाद - सम्भावनात्मक तुलना (1-Jun-2018)
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