Saturday, November 2, 2019

मैं राष्ट्रगान पर खड़ा नहीं होता।(30-Oct-2019)

छोटों को मां बाप के पैर छूने ही चाहिए, ये सम्मान का प्रतीक है। पर अगर वो नही छूते तो पड़ोसियों को हक़ नहीं मिल जाता उन्हें पीटने का। आप अपनी इच्छा से भारतीय नहीं बने, कोई भी अपनी इच्छा से अपनी पसंद की जगह पैदा नहीं होता। आप किसी भी एक Random जगह पैदा हो जाते हो, और उस देश की सरकारें आपको उस देश से प्यार करने के लिए ,जान देने के लिए तैयार करती हैं। ना वो देश आपका चुनाव था, न उस देश में चलने वाले कानून आपने चुने थे। पर समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए ये जरूरी है कि लोग एक विचारधारा को ही मानें। हालांकि इस समाज का हिस्सा बनना भी आपका चुनाव नही था। राष्ट्गान मुझे एक तो आधा समझ नहीं आता , दूसरा मुझे लगता है वो काफी खराब लिखा गया है। उतना ही ख़राब जितने रामायण के कुछ श्लोक, क़ुरान की कुछ आयतें, या बाइबिल के कुछ वर्स लिखे गए है।अब आप जबरदस्ती मुझे मारपीट कर कहेंगे, कि नही इसका सम्मान करो इसपे खड़े हो जाओ तो हो सकता है में डर के आपकी बात मान लूँ , पर आप मेरे विचार को मेरे अंदर से कैसे निकालेंगे। पंजाब , सिंध, गुजरात , मराठा... ये "सिंध" कहाँ पड़ता है बे....? इन ठेठ राष्ट्रवादियों से कहो कि पहले सिंध भारत में मिला लें उसके बाद हम अर्बन नक्सलो को धमकाए राष्ट्र के चिन्हों के सम्मान के लिए। अग़र राष्टवाद के नाम पे राष्ट्रगान थोपना सही है, तो तमिलनाडु पर हिंदी थोपा जाना, बिहारिओं को मराठी के लिए पीटा जाना भी सही है। Anupam S Shlok hashtagAnupamism

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