Friday, November 27, 2009

AMMY



"
ऐमी " यही नाम था उस प्यारी सी बच्ची का बात कोई पन्द्रह साल पहले की है जब मैंने पहली बार मुंबई में कदम रखा था तब मैं एक २२ साल का एक नवयुवक ही तो था,जो बहुत सारी महत्वाकांक्षाओं के साथ इस "सपनो के शहर " में आया था।


आते ही दोस्त की मेहरबानी से एक मराठी ब्राह्मण परिवार में एक कमरा किराये पर लिया था। बहुत ही सीधा सा परिवार था। मैंने अपने साथ लाया हुआ सामान अपने कमरे में रखा और उस वक्त मैं मकानमालिक के साथ बैठकर चाय पी रहा था जब एक आठ साल की फूल सी बच्ची भागते हुए आई और आकर मकानमालकिन से लिपट गई। पहली बार उस बच्ची की कोयल सी आवाज़ मेरे कानो में पड़ी " मम्मा वो अंकित मुझे आंटी आंटी कहकर चिड़ाता है" मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया ," तो आप उसे "अंकल " कहकर बुलाया करो " ये सुनकर उसने मुझे पहली बार देखा क्योंकि अभी तक वो अपनी बाल सुलभ शिकायतों में व्यस्त थी, और अचानक ही उसके मुंह से निकला "तुम कौन"


" मेरा नाम अनुपम और आपका "? मैंने पूछा
"अमृता" ......उसका सीधा सा और उखड़ा हुआ जवाब मिला।


उसे उसकी मम्मी ने बताया की अब मैं उनके घर में रहने वाला हूँ उसने मुझे एक बार देखा और फिर भागते हुए वो बाहर चली गई।




मुझे बताया गया की वो श्री सावंत और श्रीमती सावंत की बिटिया " अमृता " है , जिसे लाड से सब "ऐमी" बुलाते हैं उनका एक बेटा भी था , जो होस्टल में रहता था जब कभी भाई घर आता तो दोनों दिन भर लड़ने में व्यस्त रहते और अकेले रहने पर वो दिन भर उधम मचाती रहती।


शुरू शुरू में मुझे वो बहुत हैरानी से देखती रहती , जैसे मुझे वो नापसंद करती थी , शायद उसे मेरा उनके घर में रहना अच्छा नही लगता था। पर धीरे धीरे हम दोस्त बनने लगे।


२० दिन बाद तो वो कभी भी मेरे कमरे में धमकती और मुझे अपने बेतुके सवालों में उलझाये रखती। जैसे


"रात को कुत्ते क्यों भौकतें हैं"?
"क्या मच्छर का भी गुर्दा, फेफड़ा, दिल होता है "?
" जब हम सोते हैं तो हमें सपने क्यों आते हैं"?


जाने ऐसे कितने सवाल , जिनका उत्तर मुझे वाकई नही पता होता था.और मैं उसके बेतुके सवालों का बेतुका सा जवाब दे देता था।और जब भी उसे लगता की मैं " बेतुका "उत्तर दे रहा हूँ , वो अजीब सा मुंह बनाती और कहती "कुछ भी".....और फिर वो नाराज़ होकर चली जाती। मगर ये नाराजगी ज्यादा नही रहती और फिर कुछ देर में ऐमी नए सवालों के साथ हाज़िर हो जाती वैसे तो मुझे हर एक बच्चे से लगाव हो ही जाता है , मगर ऐमी में कुछ अलग ही बात थी




समय बीता , मैं नौकरी करने लगा, मैं सुबह सुबह ऑफिस चला जाता और ऐमी स्कूल चली जाती। जब मैं घर लौटकर आता तो वो खाना खाकर सोने की तयारी कर रही होती थी। ऑफिस तो छः बजे छूट जाता था मगर मैं सह्कर्मिओं के साथ गप्पें मारने में व्यस्त रहता और बाहर खाना - वाना खाकर १० बजे तक घर पहुँचता


मगर हर रविवार को हम दिनभर साथ रहते थे,एक रविवार को मैंने उसे ख़ुद की एक कविता सुनाई, उसने मुझसे हैरानी से पूछा..... " तुम ख़ुद लिखते हो "?


मैंने कहा "ऐमी मैं तो आपसे इतना बड़ा हूँ ,फिर आप मुझे "आप" क्यों नही कहते,"तुम" क्यों कहते हो "?
उसने सादगी से कहा " मैं सबको "तुम" ही कहती हूँ, और मैं कोशिश भी करती हूँ की "आप" कहूँ मगर आदत नहीं है , तो वो "तुम " ही निकल जाता है"


उस दिन के बाद मैंने उससे कभी नही पूछा की "तुम" क्यों, "आप" क्यों नहीं।


खैर एक-एक कर महीने-साल बीतते रहे,ऐमी बड़ी होने लगी और शायद समझदार भी एक दिन वो कमरे में आई और आते ही उसने मुझसे पूछा , "अनुपम आपकी कोई गर्लफ्रेंड है क्या, जिससे आप शादी करोगे ?"


मैंने मुस्कुरा कहा " मुझे कोई मिलती ही नही है,और शादी करूँगा तो उसे रखूँगा कहाँ , तुम्हारे पापा जाने मुझे किस दिन यहाँ से निकाल दें"


उसने शरमा के कहा " कुछ भी '
मैं उसे छेड़ते हुए बोला ," वैसे तुम मेरी दोस्त हो और गर्ल भी हो, यानी तुम ही तो मेरी गर्लफ्रेंड हुई"
ये सुनकर वो मुस्कुराती हुई कमरे से भाग गई।




जिंदगी चलती रही , मुझे वही रहते रहते पाँच साल बीत गए। मैंने भी थोड़ी थोड़ी बचत कर-कर के थोड़ा पैसा इकट्ठा कर लिया था अंततः मैंने एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया जो वहां से करीब २५ किलोमीटर दूर था।


मुझे अभी भी धुंधला सा याद है ,जिस दिन मैं सावंत परिवार का घर छोड़कर आया था ऐमी बहुत रोई थी। मुझसे तो वो इतनी नाराज़ थी की मेरे जाने के वक्त उसने कमरे में ख़ुद को बंद कर लिया था, आखिर उसका सबसे अच्छा दोस्त जो उसे छोड़कर जा रहा था।




खैर मैं नए घर में चला आया शुरू शुरू में मैं हफ्ते -दस दिन में उनसे मिलने चला जाता था ,अब ऐमी मुझसे पहले की तरह बात नही करती थी।जिंदगी की भागदौड़ में फंसने के बाद , हर रिश्ता बेईमानी हो जाता है
वैसे ही धीरे धीरे मैंने भी वहां जाना छोड़ दिया , अब कभी कभार फ़ोन पर ही बात हुआ करती थी।


दिन बीतते गए , जिंदगी अपने तरीके से मुझे चलाती रही , मेरी महत्वकांक्षाएं मुझे पर हावी हो गई , मैंने शादी भी नही की, बस अकेला ज़िन्दगी का बोझ ढोता रहा।


पिछले महीने की किसी तारीख को श्री सावंत का फ़ोन आया, हाल चाल पूछने के बाद उन्होंने बताया की, ऐमी की शादी तय कर दी गई है। लड़का U.S. में रहता है, २६ जून का लग्न है मैंने वादा किया मैं तय समय पर पहुँच जाऊँगा।




मैं २६ जून को अपना पुराना नीला कोट पहनकर घर से निकला , उनके घर के बगल वाले पार्क में ही बड़ा सा शामियाना लगा था। मैंने लिफाफा श्रीमती सावंत के हाथ में दिया, उन्होंने कहा ऐमी को विदा करके ही जाइएगा उनसे विदा ले मैं शादी के मंच के पास पहुँचा दोनों वर-वधू मंच के बीचो- बीच दो सजावटी कुर्सिओं पर बैठे थे। और लोग एक-एक कर उनके साथ फोटो खिंचवा रहे थे।


मैंने ऐमी को देखा और बस देखता ही रह गया, आज वो बिल्कुल परी लग रही थी विश्वास ही नही हुआ की ये वही ऐमी है , जो बात बात पर इतना उधम मचाती थी, वो आज बिल्कुल शांत मुंह नीचे करके बैठी थी।




खैर मैंने घड़ी पर नज़र दौड़ाई ,रात के १०:३० बज रहे थे , मैंने सोचा जल्दी से खाना खाऊं और निकलूं पर लाख जल्दी करके भी वही हुआ जिसका मुझे डर था जब मैं वहां से निकलकर बाहर आया तो वापिस जाने का कुछ साधन मौजूद नही था। अब मैं क्या कर सकता था , मैं वापस गया। कुछ देर मंच के पास खड़ा रहा ,हलके हलके भीड़ कम होने लगी पता चला सुबह तड़के चार बजे का लग्न है। मैंने दो कुर्सिओं को आपस में जोड़ा और सामने वाली कुर्सी पर पैर रखकर सोने की कोशिश करने लगा। सोना जरुरी था क्योंकि सुबह ऑफिस भी पहुंचना था।




मगर मच्छरों ने मुझे सोने नही दिया। बस किसी तरह समय बिताता रहा , कभी चाय पी और कभी मोबाइल के गाने सुनता रहा।


इतने में शादी के लग्न का समय हो गया था, ऐमी को लड़के के साथ बिठाया गया , पंडित जी मन्त्र पड़ रहे थे मैं एक किनारे खड़ा हो गया। तभी एकदम से लाल जोड़े में बैठी ऐमी ने ऊपर देखा , उसकी नज़रे एक पल के लिए मुझसे मिली। और जाने क्यों वो पल वही रुक गया, कुछ ऐसा हुआ जो मैं शब्दों में बयां नही कर सकता ।उस पल के बाद ऐमी ने नज़रें झुका लीं, और जाने किस ताकत ने मुझे वहां से धकेल दिया, मैं वहां खड़ा नही रह पाया


दूर से एक कुर्सी पर बैठकर मैं शादी देखता रहा; सिन्दूर, फेरे, सात वचन, धीरे धीरे ऐमी उस लड़के की होती चली गई।




विदाई का समय आया,सबकी आँखे नम थी, मैं भी वहीँ खड़ा हो गया ऐमी एक एक करके सबसे गले मिली, भाई , माँ, पिता...उस वक्त मुझे वाकई लगा की अब वो वाकई पराई हो गई है इतने में ऐमी मेरे सामने आई और हम दोनों ने फिर से एकदूसरे की आँखों में देखा , और फिर मैंने उसे मायके से आखिरी विदा देने के लिए गले से लगा लिया।


इतने में कुछ शब्द मेरे कानो में पड़े.....वही कोयल सी आवाज़...." मम्मा वो अंकित मुझे आंटी आंटी कहकर चिड़ाता है"......वही शिकायत भरी आवाज़....


वो शब्द थे " Anupam....I had a huge crush on you......"












Regards
Anupam S.
(26-27 Nov 2009)
9757423751

1 comment:

Anonymous said...

liked it... nice..