वह मनुष्य था या यमराज का
दूत ,
स्पष्ट नहीं होता , यदि
चढ़ा हो परीक्षा का भूत ;
पूर्ण दिवा - रात्रि सोचने
में चली जाती है ,
स्वप्न में मात्र कबीर कि
जीवनी याद आती है ;
गणित के सूत्र रटना आसान नहीं
होता ;
परीक्षा हेतु नक़ल ले जाने
वाला शैतान नहीं होता ;
हर माता अपने पुत्र
को समझती है सपूत ,
स्पष्ट नहीं होता , यदि
चढ़ा हो परीक्षा का भूत ;
इंग्लिश कि स्पेलिंग राइटिंग
रांग हो जाती है ,
लिखना चाहता था ईश्वर
(GOD ) मगर कुत्ते (DOG) का एहसास दिलाती है ,
संस्कृत के रूपों में अहं
घूमता रह जाता हूँ ,
लट् कि जगह लोठ् ,
और लोठ् कि जगह लृट् के रूप लिखके आता हूँ ;
फिजिक्स , केमिस्ट्री ,
बायो में कन्फ्यूजन हो जाता है ,
E = mc2 डार्विन का सिद्धांत
नज़र आता है ,
सामाजिक विज्ञान कि तूती केवल
घर में बोलती है ;
नंबर नदारद होते हैं , असल
दिखता है केवल सूद ,
स्पष्ट नहीं होता , यदि
चढ़ा हो परीक्षा का भूत।
अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
6-April-2002
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