Original writings of a Nihilist | "गरीबों का Philosopher" | Atheist | Vegeterian
Saturday, January 18, 2014
Saturday, January 11, 2014
Thursday, January 9, 2014
जय महाकवि अनुपम शर्मा ....!!!(25-August-2002)
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कवि सम्मलेन का वर्णन.....!!!( 1-May-2002)
करुण कविता के पश्चात हास्य का नंबर आया ,
Wednesday, January 8, 2014
एक करुण रात्रि का वर्णन...!!!(22- February- 2002)
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;
हास्य के सम्राट द्वारा श्रेस्ठ रचना आ रही ,
रात के ११ बजे , पड़ोसन हमारी गा रही है ,
दिमाग मैं है जंग सा थोडा बहुत है लग रहा ,
लग रहा है बगल में बुड्ढा अभी तक जग रहा ,
कुत्ते कि गुर्राहट से नींद अब तो जानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;
टीवी पड़ा है बंद पर सोना नहीं है आ रहा ,
भूत नयी कविता का ये मस्तिष्क से नहीं जा रहा ,
हाथ में पीड़ा सा कुछ अनुभव हमें है हो रहा ,
और प्रिय कालू हमारा ऊँचे स्वर में रो रहा ;
जितने लम्बे पैर हैं , चद्दर उतनी ही तानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है
भैंस कि झंकार से मम्मी हमारी जग पड़ी ,
पेट क्या ख़राब है , ये कहके हमसे लड़ पड़ी ,
"अनुपम" कि कलम को तोड़कर फैंका वहाँ ,
अस्थि पंजर ढूंढने में लग गए जहाँ तहाँ ;
ऐसे में पापा को मेरे दूध रोटी खानी है ,
मगर कविता करुण होगी सोचना बेमानी है ;
अनुपम S "श्लोक"
anupamism@gmail.com
22-Feb- 2002
परीक्षा का भूत.....!!! (6 - Apr- 2002)
Saturday, January 4, 2014
इस रात के बाद ....!!!(4th - Jan - 2014)
Friday, January 3, 2014
कवितायेँ जन्म नहीं लेती....!!!! (3rd-Jan-2014)
पर कविता ने कल रात जन्म लिया।
एक अट्टहास के साथ , कोलाहल के साथ ,
पुऱाने संतरे के पेड़ के नीचे ,
किसी नौसिखिये कवि कि कलम से।
जिसकी तलाश ही थी , कविता का जन्म।
देखो तो मुस्कुराती हंसी उसके चेहरे पे ,
जैसे कुछ नया चुटकुला सुना हो कोई ;
अब देखना...
देखना कविता का बालक से युवती बनने का सफ़र ,
और फिर कविता बूढ़ी हो जायेगी ,
पर वो मरेगी नहीं , क्योंकि कवितायें मरती नहीं कभी ;
शब्दो के शुक्राणु और भावनाओं के अंडाणु ,
दोनों ही तो अमर हैं , तो कविता क्यों मरेंगी भला ?
ये सहवास ही तो पवित्र है बस ;
जो केवल कविता के जन्म के लिए ही है ;
किसी भौतिक आनंद के लिये नहीं।
आओ गीत गायें , प्रफुल्लित हों ,
क्योंकि कविता ने जन्म लिया है ,
जबकि कविताएं जन्म नहीं लेती।
अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
3rd-Jan-2014
बिलकुल पगली है तू ...!!!!(3-Jan-2014)
आओ आंसू , थमो नहीं.... !!!!(3-Jan-2014)
धो दो ये दाग कि मैं उसका पहला प्यार नहीं ,
या प्यार ही नहीं शायद…??
धो डालो वो वक़्त कि जब मैं उसके संग था ,
धो डालो वो स्पर्श जो महसूस होता था उसकी छुअन पे ;
पर जानता हूँ , तुम एक छिछोरी पानी कि बूँद हो बस ;
कलुषित कलंक को धो न पाओगे।
तुम तो तब भी निकले थे , जब मैं बार बार बिखरा था ,
क्या प्राप्त किया मैंने या तुमने अब तक।
ये आज का युग है , कलयुग है ;
जब भी तुम आते थे , समझाता था तुम्हे चुपके से ,
ये प्रेम नहीं है माया है , मकड़ी का जाला सा ;
हाँ दोषी मैं हूँ , पर तुम भी हो , मानोगे न ?
जब मेरी आँख से निकले तुम कोई मूल्य न था ,
उसकी आँख से निकले मैंने तुम्हे ईश्वर माना ;
याद है न , ऊँगली पे लेके पिया था तुम्हे , जैसे गंगाजल ;
तुमने शिकायत भी नहीं कि उसकी तब भी , कि ढोंग है सब ;
चलो छोड़ो , अब जाने दो , उसको जीना है जीने दो ;
जब भी चाहो आ जाना , मेरी आँखों पे छा जाना ;
प्रण है तुम्हे न रोकूंगा , घर दूंगा , दूंगा सम्मान ;
आओ चले मित्र बन जाएँ , संग रहे सदा ,
आओ आंसू , थमो नहीं …!!!!
अनुपम S "श्लोक "
anupamism@gmail.com
3rd - January 2014