अजब दुविधा है...हर बार किसी को अपने लायक बनाने के लिए उसे असीम प्रेम देकर बदल डालना पड़ता है..फिर सवाल काटने दौड़ पड़ता है की ये हार है या जीत...जीत इस बात की मेरे प्रेम का बहाव किसी को बदल के रख देने की ताकत रखता है...और हार ये की ये चक्र समाप्त नहीं कर पता जब बदलने की जरूरत ही न हो... हम एक दूसरे के लिए सम्पूर्ण हों...जन्म जन्मान्तर के लिए...!!!
आसमान मेरा ये दर्द क्यों समझेगा? उसे ऊपर उठने से फुर्सत कहाँ? पर हर टीस का कुछ तो मल्हम होता जरूर है... वो मल्हम तुम्हे पा लेना है या सदा के लिए खो देना?
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