Wednesday, December 18, 2013

दीपक बनाम अँधेरा ...!!! (16-01-2004)




रात  की तरह अँधियारा फैला है.. 
मन  में और बाहर ;
और आज चाँद भी नहीं निकला;
रात डरावनी है.... मैं डरपोक नहीं 
डरूंगा तो जियूँगा कैसे ?
मुझे तो दीपक जलाना  है.. 
अंधियारे के बीच... उजाले के लिए ;
लेकिन , लेकिन मुझे दीपक कौन दिखायेगा??
क्या कोई दूसरा "अनुपम "??
और उसे ??
ओह , प्रश्न गम्भीर है ,  उत्तर जटिल;
आहा !! उत्तर पा  लिया, इतनी शीघ्र ;
मन उत्तर जानता था दिमाग नहीं;
मैं स्वयं का मार्गदर्शन करूँगा ;
स्वयं दीपक बनूँगा ;
अब , मैं प्रतिनिधि बन पाउँगा , उजियारे का ;
अन्धकार मिटेगा निश्चित ;
ओह, लेकिन मेरी कौन सुनेगा??
मेरी  बतायी राह पर कौन चलेगा ??
आज सब समझदार हैं,
सब जानते हैं , दो कानों का सर्वोत्तम प्रयोग ;
वो अँधेरे में भी जी सकते हैं ,
उन्हें  उजाले कि क्या आवश्यकता ?
वाह!! अब उजाला सिर्फ मेरा है 
किसी को नहीं दिखाऊंगा ;
लेकिन , लेकिन  उजाला छुपता नहीं ;
क्या करूँ?? क्या करूँ ??
आहा !! दिमाग से उत्तर पाया ;
तुम्हे बताऊँ , " मैं दीपक बुझा दूंगा " 
हा हा हा हा हा 
न रहेगा बाँस , न बजेगी बाँसुरी ;
किसी को उजाला नहीं चाहिए ;
क्या तुम्हे चाहिए ????



अनुपम S "श्लोक"
anupamism@gmail.com
8447757188


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