स्वप्न क्या एक शब्द है, मात्र एक शब्द;
सार्थकता से परे, मात्र एक शब्द;
शब्द जो आकार में नहीं ढल सकता;
शब्द जो ध्वनि में नहीं बंध सकता,
शब्द जो वायु सा तीव्र तो नहीं,
शब्द जो अग्नि या नीर तो नही,
फिर क्या सार्थकता उस शब्द की,
जो मानवीय चिंतन से परे हो !!
स्वपन जो एक शब्द नही , एक एहसास नही,
एक पराकाष्ठा है , मानवीय उद्वेलना की,
एक असमझा सा दृश्य ही तो है,
एक गूढ़ सा पीला प्रकाश ही तो है,जो शायद अपूर्ण सा या अनंत सा लगता है ,
वो अनंत जिसका कोई आदि नही ,
फिर क्या सार्थकता उस शब्द की,
जो मानवीय मूल्यों से परे हो !!
स्वप्न , सिर्फ़ मेरा तो नही,और आपका?
जो दृश्यमान होकर भी अदृश्य है,
कभी लगता है हाथ बढाऊँ और छु लूँ,
या फिर एक शीतल पेय , उठाऊँ और पी लूँ,
शायद मेरी उम्मीद की नींव है मेरा स्वप्न ,
शायद , मेरी साँसों का संगीत है मेरा स्वप्न ,
फिर क्या सार्थकता उस शब्द की ,
जो मानवीय सार्थकता से परे है।
स्वप्न .....एक कोरा स्वप्न ......!!
अनुपम S. "श्लोक"
anupamism@gmail.com
8447757188
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