कैसे बदल जाती है ज़िन्दगी , सिर्फ कुछ ही पलों में।
जो अपना हो , बेगाना हो जाता है।
जो नया था , वो पुराना कहलाता है।
क्यों साथ ,जुदाई बन जाता है।
क्यों दिन रात में डूब जाता है।
क्यों प्यार एक किस्सा बन के रह जाता है।
क्यों जो करीब था वो , दूर हो जाता है।
कैसे पत्थर देवता हो जाता है।
क्यों मेरी साँसे मेरा दम घोटने लगती है।
क्यों मेरी परछाई मुझसे दूर भागना चाहती है।
क्यों मेरी नींद मुझसे आँख चुराती है।
क्यों मेरी आँखें अब सपने नहीं दिखाती हैं,
समझना चाहता हूँ मगर समझ नहीं आता है ,
क्या क्या हुआ और क्या क्या हो जाता है।
सिर्फ कुछ ही पलों मैं.…
सिर्फ कुछ ही पलों मैं.…
सिर्फ कुछ ही पलों मैं.…
अनुपम S "श्लोक"
anupamism@gmail.com
No comments:
Post a Comment