किसने तुम्हे हक़ दिया मेरी ज़िन्दगी से खेलने का ?
क्या हक़ है तुम्हे इतना खूबसूरत लगने का ?
क्यों मैं बार बार तुम्ही को याद करता हूँ , तुम्ही को सोचता हूँ ?
क्यों मेरी आखें सिर्फ तुम्ही को देखना चाहती हैं ?
क्यों मेरे लब केवल तुम्हारा ही नाम लेना चाहते हैं ?
क्यों आखिर क्यों मैं ऐसा हो गया हूँ ?
शायद कुछ चीज़ें मेरे रुबरु ही नहीं होना चाहतीं,
पर तुम एक चीज़ तो नहीं ,
तुम एक एहसास हो जिंदगी भर के लिए ,
एक एहसास जो तन बदन और साँसों तक में बस चुका है।
जब भी तुम्हे मेरे प्राणों कि आवश्यकता पड़े ,
आना और नि:संकोच मांग लेना।
अनुपम S. "श्लोक"
anupamism@gmail.com
क्या हक़ है तुम्हे इतना खूबसूरत लगने का ?
क्यों मैं बार बार तुम्ही को याद करता हूँ , तुम्ही को सोचता हूँ ?
क्यों मेरी आखें सिर्फ तुम्ही को देखना चाहती हैं ?
क्यों मेरे लब केवल तुम्हारा ही नाम लेना चाहते हैं ?
क्यों आखिर क्यों मैं ऐसा हो गया हूँ ?
शायद कुछ चीज़ें मेरे रुबरु ही नहीं होना चाहतीं,
पर तुम एक चीज़ तो नहीं ,
तुम एक एहसास हो जिंदगी भर के लिए ,
एक एहसास जो तन बदन और साँसों तक में बस चुका है।
जब भी तुम्हे मेरे प्राणों कि आवश्यकता पड़े ,
आना और नि:संकोच मांग लेना।
अनुपम S. "श्लोक"
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