मैं आज फिर तनहा हूँ...!!
क्या यही माँगा था मैंने ज़िन्दगी से ?
मैंने तो बस आराम चाहा था , तन्हाई नहीं।
फिर क्यों मैं आज फिर तनहा हूँ ??
उन आँखों में घंटो देखता था।,
मेरी ज़िन्दगी केवल ढाई इंच आँखें थी।
लेकिन उन आँखों ने क्या माँगा होगा ?
मेरा साथ ही माँगा होगा शायद।
फिर क्यों मैं आज फिर तनहा हूँ ??
क्या यही माँगा था मैंने ज़िन्दगी से ?
मैंने तो बस आराम चाहा था , तन्हाई नहीं।
फिर क्यों मैं आज फिर तनहा हूँ ??
उन आँखों में घंटो देखता था।,
मेरी ज़िन्दगी केवल ढाई इंच आँखें थी।
लेकिन उन आँखों ने क्या माँगा होगा ?
मेरा साथ ही माँगा होगा शायद।
फिर क्यों मैं आज फिर तनहा हूँ ??
वो रातें , दोस्तों के साथ बीतती थी ,
वो बातें , गम ख़ुशी बांटती थी।
वो शामें घूमने को होती थी।
क्या वो मुझसे दूर जा सकते थे ?? नहीं।
फिर क्यों मैं आज फिर तनहा हूँ ??
जिंदगी बदल गयी है , मैं बदल गया हूँ।
राहें बदल गयीं हैं मैं बदल गया हूँ।
सोच बदल गयी है , मैं बदल गया हूँ
विश्वास बदल गए हैं , मैं बदल गया हूँ।
और सच सिर्फ ये कि ……
मैं आज फिर तनहा हूँ...!!
अनुपम S "श्लोक"
anupamism@gmail.com
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